अजीब तरह से गुजर गयी मेरी भी ज़िन्दगी !!
सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ, मिला कुछ !!
जीने का हौसला कभी मरने की आरज़ू !!
दिन यूँ ही धूप-छाँव में अपने भी कट गए !!
ज़िन्दगी उस अजनबी मोड़ पर ले आई है !!
तुम चुप हो मुझसे और मैं चुप हूँ सबसे !!

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल !!
कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा !!
शाम तक सुबह की नजरों से उतर जाते हैं !!
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं !!
कितना मुश्किल है ज़िन्दगी का ये सफ़र !!
खुदा ने मरना हराम किया लोगों ने जीना !!
मंज़िलें तेरे अलावा भी कई है लेकिन !!
ज़िन्दगी किसी और राह पे चलती ही नहीं !!
रूकती नहीं है किसी के लिये मौजे-जिन्दगी !!
धारे से जो हटे वो किनारे पर आ गये !!
“सब कुछ मिल जाये तो क्या मजा !!
जीने के लिए एक कमी जरूरी है !!
अपने हर अल्फाज में कहर रखता हूँ !!
चाहे रहूँ खामोश फिर भी असर रखता हूँ !!
“जख्म कहाँ कहाँ से मिले है छोड़ इन बातो को !!
जिंदगी तू तो ये बता सफर कितना बाकी है !!
ठोकरें खाकर भी ना सम्भले तो मुसाफिर का नसीब !!
राह के पत्थर तो अपना फर्ज अदा करते है !!
लिखने वाले ने क्या खूब लिखा है !!
जिंदगी जब मायूस होती है तभी महसूस होती है !!
दबे होंठों को बनाया है सहारा अपना !!
सुना है कम बोलने से बहुत कुछ सुलझ जाता है !!
मैंने वक़्त से दोस्ती करली !!
सुना है ये अच्छे अच्छों को बदल देता है !!
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