अब क्या लिखूं तेरी तारीफ में मेरे हमदम !!
अलफ़ाज़ कम पड़ जाते है तेरी मासूमियत देखकर !!
तुम्हारे गालों पर एक तिल का पहरा भी जरूरी है !!
डर है की इस चहरे को किसी की नज़र न लग जाए !!
जो कागज पर लिख दू तारीफ तुम्हारी तो !!
श्याही भी तेरे हुस्न की गुलाम हो जाये !!

क्या लिखूं तेरी तारीफ-ए-सूरत में यार !!
अलफ़ाज़ कम पड़ रहे हैं तेरी मासूमियत देखकर !!
ख्वाहिश ये नहीं की मेरी तारीफ हर कोई करे !!
बस कोशिश ये है की मुझे कोई बुरा न कहे !!
हाय ये नज़ाकत ये शोखियाँ ये तकल्लुफ़, ये हुस्न !!
कहीं तू मेरी शायरी का कोई हसीन लफ्ज़ तो नहीं !!
मेरी आँखों को जब उनका दीदार हो जाता है !!
दिन कोई भी हो मेरे लिए त्यौहार हो जाता है !!
हम आज उसकी मासूमियत के कायल हो गए !!
उसकी सिर्फ एक नजर से ही घायल हो गए !!
वो मुझसे रोज़ कहती थी मुझे तुम चाँद ला कर दो !!
आज उन्हें एक आईना देकर अकेला छोड़ आया हूँ !!
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा !!
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं !!
तुमको देखा तो मुझे मोहब्बत समझ में आयी !!
वरना औरों से ही तुम्हारी तारीफ सुना करते थे !!
गिरता जाता है चहरे से नकाब अहिस्ता-अहिस्ता !!
निकलता आ रहा है आफ़ताब अहिस्ता-अहिस्ता !!
ममता की तारीफ न पूछिए साहब !!
वक्त आने पर चिड़िया सांप से लड़ जाती है !!
इज़्ज़त और तारीफ़ मांगी नहीं जाती !!
इसे ईमानदारी से कमाना पड़ता है !!
ग़ुस्से में जो निखरा है, उस हुस्न की क्या बात !!
कुछ देर अभी मुझसे तुम यूँ ही ख़फ़ा रहना !!
बस इस शौक़ में पूछी हैं लाखो बातें !!
मैं तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयाँ तक देखूँ !!
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