जो लोग आपकी मजबूरी को समझते है !!
वही आपके मजबूरी का फायदा उठाते है !!

थक जाता हु अनकहे शब्दों के बोझ !!
से पता नहीं चुप रहना समझदारी है या मजबूरी !!

क्या थी मजबूरी तेरी जो रस्ते बदल लिए तूने !!
हर राज कह देने वाले क्यों इतनी सी बात छुपा ली तूने !!

बहुत दर्दनाक होती है लाचारी !!
करती है जीना मुश्किल मजबूरी !!

बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे !!
कि जीने के लिए मजबूर हो जाऊँ !!

तुम बेवफा नहीं ये तो धड़कने भी कहती हैं !!
अपनी मजबूरी का एक पैगाम तो भेज देते !!

ऐसी भी क्या मजबूरी आ गई जनाब की !!
आपने हमारी चाहत का कर्ज़ा धोका दे कर चुकाया !!

सब गुलाम है अपने हालातों के यहाँ !!
बेचैन आँखे सोती नहीं रातों में यहाँ !!

मेरी मज़बूरी को समझोगे तो रो तो ना दोगी !!
पेड़ से टूटे पत्तों की तरह मुझे खो तो ना दोगे !!

कुछ अलग ही करना है तो वफ़ा करो !!
वरना मजबूरी का नाम लेकर बेवफाई तो सभी करते है !!

ज़िंदगी है अपने क़ब्ज़े में न अपने बस में मौत !!
आदमी मजबूर है और किस क़दर मजबूर है !!

आप की याद में रोऊं भी न मैं रातों को !!
हूं तो मजबूर मगर इतना भी मजबूर नहीं !!

तेरी मजबूरियां दुरुस्त मगर !!
तू ने वादा किया था याद तो कर !!

इतना तो समझते थे हम भी उस की मजबूरी !!
इंतिज़ार था लेकिन दर खुला नहीं रक्खा !!

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी !!
यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता !!

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Q&2